Tuesday, May 18, 2010

ये दुनिया

ये दुनिया बहुत ही सुन्दर है । जब तक मै अपने शेहर में रहा तब तक अपने शेहर को ही दुनिया का ज्यादा सुन्दर शेहर समझा अब जब कई शेहर कई देश देखने के बाद दिल मै ये एहसास हे की ये दुनिया बहुत छोटी नहीं है। जब तक आप बहार नहीं निकलते तब तक आप कुएं के मेदक की तरह है। बहार निकलने के लिए परिवार का मोह त्यागना पड़ता है। ये एक सन्यास की तरह है। दुनिया जितनी बुरी है उतनी अच्छी भी है। ये दुनिया बुरी भी हमारी वजह से है और अच्छी भी हमारी वजह से। क्यों न हम उन सब सीमाओं को काट दे जो हम लोगों को अलग करती है। हम को कहीं भी जाने की अज्जादी हो। रंग रूप का कोई भेद न हो। कोई धर्म न हो। कोई जाती ना हो। सामान मुद्रा हो। एक सरकार हो। एक ही देश हो। इससे ज्यादा क्या चाहिए।

अच्छा अब मै चलता हूँ । एक नए शहर की तलाश मै। और वोः है औरंगाबाद और जलगाँव। जो की महारास्त्र के दो ऐतिहासिक शहर है।